Blog Post 03: The CHILD AGE
Depression की कई cases में ये देखा गया हैं की उसके बीज बचपन से जुड़े होते हैं और फिर उम्र के किसी भी पड़ाव में परिस्थति अनुसार वो प्रबल (aggreviate)हो सकते हैं।बचपन या भूतकाल में घटी घटनाओंके परिणाम या आघात, मन के किसी कोने में घर कर बैठते है। फिर वर्तमान में वैसीही किसी घटना या प्रसंग के चलते मन में घर कर बैठा उसका परिणाम या उससे जुड़ा डर उभर आता हैं। उससे मानसिक संतुलन बिगड़ सकता हैं। इसका असर जीवन में घटते प्रसंगोंका सामना करते वक्त लगने वाली मानसिकता पर कुछ हद तक हो सकता हैं। इंसान का बचपन कैसी संगत में गुजरता है, इस पर भी उसका मन किस तरह से कार्य करता है ये जानने में मदत हो सकती हैं। ज्यादातर इंसान तीन प्रकार के वातावरण में बड़ा होता है जिससे काफी हद तक उसकी जिंदगी जीने की मानसिकता तय होती हैं :
१) Protective या Pampered Environment २) Carefree Environment ३) Strict या Abusive Environment
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Protective OR Pampered Environment |
१)Protective या Pampered Environment:
ऐसे वातावरण में पले बच्चोंको जिंदगी की जठिलता का सामना करने में तकलीफ हो सकती हैं। उनके निर्णयक्षमता पर परिणाम हो सकता हैं। उनके लिए हर चीज का बुरा भला जो भी असर हो, उसे चुनने का काम उनके माता-पिता करते हैं। इसिलिए जब किसी परिस्थति में अगर उन्हें लगता है की वो fit नहीं हो रहे है तो वो तुरंत uncomfortable feel करते है। अगर किसी प्रसंग में उन्हें निर्णय लेने की नौबत आती है तो वो तनाव में चले जाते हैं, बेचैन होते है। और फिर उस परिस्थिति का सामना करने के बदले वो उससे दूर भागते हैं। उससे छुटकारा पाना चाहते है। यही बेचैनी आगे चलकर depression में परिवर्तित हो सकती है।
२) Carefree Environment:
ऐसे वातावरण में पले बच्चे जिंदगो बेफिक्री से जिने की चाह रख सकते हैं। यही बेफिक्री, उनमें गुनहगारी मानसिकता भी पैदा कर सकती हैं। कई दफा माता-पिता अपने जीवनशैली और करियर सँवारने में मशगूल रहेते हैं। जिसकी वजह से वो अपने बच्चों की सारी जरूरतें उनको अपना समय देने के बजाय, पैसोंसे खरीदी हुई चीजों से पूरी करते हैं। इसी सोच को परवरिश समझनेकी गलती करते है। मातापिता के इसी बर्ताव का अनुकरण बच्चे करते हैं। क्या सही क्या गलत इसकी समझ देने वाला कोई अपना उनके आसपास नहीं होता। या तो वो अकेले हो जाते है या गलत संगत पकड़ लेते हैं। फिर उन्हें अनुशासन(discipline)सिखाने के बहाने माता-पिता और एक बड़ी गलती करते है और उन्हें खुद से दूर किसी hostel या boarding में भेज देते हैं , जिससे मानसिक तौर पर बच्चा अपने माता-पिता से और भी दूर चला जाता हैं। जब तक माता-पता को ये बात समज आती हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
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Strict /Abusive Environment |
३)Strict किंवा Abusive Environment:
ऐसे वातावरण में पले बच्चे डरपोक मानसिकता के शिकार बन सकते हैं। या फिर उनमें एक छुपी आक्रमक या बागी प्रवृति भी विकसित हो सकती हैं। इसका परिणाम उनकी निर्णयक्षमता पर भी हो सकता है। इसकी दो वजह हो सकती हैं। पहिली वजह होती हैं माता-पिता का बच्चों के प्रति जरूरत से ज्यादा सख्त बर्ताव या दूसरी वजह, माता-पिताके बिच होने वाले घरेलू झगड़े या घरेलू हिंसा (domestic violence) होती हैं। इसी सख्त वातावरण के वजह से बच्चे खुलकर सांस नहीं ले पाते। ऐसे वातावरण में उनका दम घुटने लगता है। और ये बंधन, ये हिंसा, जब सहन करने की क्षमता के बाहर हो जाता है तो उनका मन बगावत कर उठता है। यही बगावत, यही आक्रमकता आगे चल कर घातक हो सकती हैं। इसिलिए अनुशासन का सही समन्वय रखना माता-पिता की जिम्मदारी होती है।
अच्छे पोषक वातावरण में पले इंसान भी depression के शिकार होते हैं। कभी कभी आसपास की परिस्थतियाँ भी इंसान की मानसिकता पर असर करती है। इसी वजह से नामचीन कलाकार, खिलाड़ी, उद्योजक जिंदगी और उम्र के अलग अलग पड़ाव पर अपने करिअर के शिखर पर, जीवन की सारी उपलब्धियां के बावजूद Depression के शिकार होते हुए पाये जाते हैं।
आजकल तो सारे highly qualified working parents अपने बच्चो की सारी materialistic जरूरतें उनके बचपन से ही पूरा करने में जुटे रहते हैं और इसी को अच्छी परवरिश (parenting) भी समझने की गलती करते हैं। उन बिचारे बच्चोंको ये पता भी नहीं होता की उनके माता-पिता केलिए इतना सारा खर्चा दरसल भविष्य मे उन्ही बच्चोंद्वारा अपनी उम्मीदे पूरी करवाने की investment होती है। उनको अपने उच्चस्तरीय समाज में अपना स्टेटस बनाये रखने केलिए एक symbol चाहिए होता है। माता-पिता का अपने बच्चोंसे उम्मीद करना बिलकुल भी गलत नहीं है। पर अपने बच्चोंकी क्षमता (capabilities) जानकर उनसे उम्मीद रखना जरूरी नहीं है क्या? कोई बच्चा स्पोर्ट्स में माहिर हो सकता हैं या कोई बच्चा artistic हो सकता हैं। ऐसे बच्चोंसे पढ़ाई में अव्वल आने की उम्मीद करना उन पर अन्याय है। इसकेलिए बच्चोंकी मानसिकता को समझना और उनके साथ वक्त गुजारना जरूरी है। कुछ बच्चे पढ़ाई में होशियार होते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं की क्लास में या बोर्ड़ exam में उसे अव्वल ही आना हैं। वो कोशिश तो जरूर करेंगे, आखिर किस होशियार बच्चे को अव्वल आना पसंद नहीं होगा। लेकीन अगर कही वो दूसरे या तीसरे नंबर से पास हुआ तो उसकी होशियारी तो कम नहीं होती। पर माता-पिता उससे इस तरह का दुर्व्यवहार करते है की उसके मन में एक प्रकार की अपराधी भावना निर्माण हो जाती है। और यही भावना जाने अनजाने में उनके भीतर एक प्रकार का न्युनगंड पैदा कर सकती हैं।
हमेशा अपनेही काम में व्यस्त माता-पिता को ये बात ज्ञात नही होती। उनका ध्यान सिर्फ results पर होता है। Results अगर उनके अपेक्षा के विपरीत आ गये तो फिर "पढ़ाई न करने का तो सिर्फ बहाना चाहिए होता हैं","हमने भी तो बिना इतनी सुविधाओंके सब कुछ किया है","हमें टेंशन्स नहीं थी?""हमने अपने रास्ते ढूंढ निकाले !" ऐसे विधान आते जाते, कभी बाहरवालों के तो कभी

बच्चो में पाये जाने वाले कुछ मानसिक विकार:(अधिक जानकारी केलिए लिंक पर जरूर क्लिक करें )
Learning Disorders(Dyscalculia, Dysgraphia, Dyslexia):
Conduct Disorder(CD):
Autism Spectrum Syndrome:
Attention Deficit Hyperactivity Disorder(ADHD):
Oppositional Defiant Disorder(ODD):
अच्छी यादे सिमटने के और बिना किसी भय के जिने वाले उम्र में, बच्चे कितना तनाव पाल रहे है इसका विचार माता-पिता और शिक्षण कर्ताओंको को जरूर करना चाहिए।
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किशोरअवस्था (teenage) में उत्पन्न होने वाले DEPRESSION के बारे में अगले हफ्ते,अगले blog The TEENAGE में, तब तक stay safe and healthy, MENTALLY & PHYSICALLY 😊.
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे
Very important article for all parents as they do not believe in their parenting mistakes & their own children are soft target to put their frustrations on to. Parents get the realization of it very much lately as they believe in mentality of everything they are doing is for the family . Where as none of a parents understand their own childhood & their cchildren's always it's not same.
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