Blog Post 06: The MIDDLE AGE
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MIDLIFE CRISIS |
साधारण जिंदगी में Midlife crisis भी स्त्री-पुरुषों में depression की एक वजेह हो सकती है। Midlife crisis का शोध मनोवैज्ञानिक Carl Jung ने लगाया था और उनके हिसाब से ये परिपक्व (matured) होने की प्रक्रिया का साधारण प्रमाण है। 38-40 उम्र के बाद, लोगों को इस प्रक्रिया में एक भावनिक संक्रमण (emotional transition) का अनुभव होता है। इसके चलते कुछ लोग अपनी जीवनशैली में आस पास की परिस्थितियों में परिवर्तन लाने की चाह रखते है और आसानी से कर भी सकते है। लेकिन जो आसानी से कर नहीं पाते वो लोग depression या चिंता (anxiety) के शिकार हो सकते है।
कई बार पैसा कमाने में पति पत्नी इतना मशरूफ हो जाते है की जिस वजह केलिए पैसे कमा रहे होते है वो वजह ही भूल जाते है। आज के जमाने में काफी लोग नौकरी लगते ही ४० की उम्र तक बहोत पैसा कमा कर ४० की उमर में retirement लेकर जो जिंदगी में करना चाहते है वो बिना किसी tension के करने की चाह रखते है। लेकिन ४० की उम्र तक अपनी मानसिकता इस तरह से गंवा बैठते है की उस चक्रव्यूह से बाहर ही निकल नहीं पाते। और ३५-४० की उम्र में diabetes, blood presure जैसे बिमारी जुड़ जाती है जिससे फिर इंसान अंदरूनी तौर से धीरे धीरे खोकला होने लगता है। आपके सारे plans fail होते नजर आते हैं। इसीलिए उम्र के हर पड़ाव में काम के साथ साथ जिंदगी का आनंद भी उठाना जरूरी हैं। इस स्पर्धात्मक युग में अगर कुछ कल करने केलिए रखेंगे तो वो कल कभी नहीं आने वाला। जो है वो अभी है, इसी पल में हैं, तो हर पल मजे में जीना जरूरी हैं। ये सिर्फ तभी हो सकता है अगर हम योजनात्मक तरिके से अपने जीवन में काम और बाकी आनंद का योग्य समन्वय (balance) रखे।
एक अच्छी समृद्ध जिंदगी जिने की जक्तोजहेत में इंसान अपनी financial liabilities इतनी बढ़ा देता है की फिर उन liabilities को पूरा करने के चक्कर में तनाव पूर्ण जीवनशैली का शिकार हो जाता है। अगर जो है वो हात से छूट गया तो जो आराम और शानोशौकत की जिंदगी जिने की लत लगी हुई होती है उसे छूटने का डर इंसान को अंदर ही अंदर कुरेदता रहता है। यही depression की वजह होती है। अचानक recession या कोरोना महामारी जैसे संकट के समय में नौकरी से हटाया जाता हैं ओर आर्थिक संकट से झूंझने का तनाव उसें हर तरफ से घेर लेता है।
यही तनाव जाने अनजाने फिर परिवार में, रिश्तों में झलकना शुरू हो जाता हैं। पति-पत्नी के बिच झगड़े की वजह बन जाता हैं। दोनों को एक दूसरे की सोंच पर संदेह होने लगता हैं। जो पति-पत्नी शादी के बाद अपने पारिवारिक अरमान पुरे करने केलिए एक साथ मेहनत करके मध्यम उम्र में पहुंचने तक एक समृध्द जीवन हासिल कर चुके होते हैं वही आज अचानक एक दूसरे को पराया समझने लगते है। उनमे एक प्रकार की संवादहीनता (communication gap) आ जाती हैं। अच्छे करिअर और नौकरी के वजह से दोनो आर्थिक रूप से सक्षम और स्वतंत्र होते हैं। तो अब इस उम्र में दोनो में से किसी एक की भी समझौता करने की मानसिकता नहीं होती जो शादी की असली नींव हैं। यही वजह फिर काफी हद तक इस मध्यम उम्र के पड़ाव में तलाख (divorce) की वजह बन जाती है। जिसका असर बच्चोकी मानसिकता पर भी हो जाता है।
इसीलिए जीवन में अब कुछ हद तक न्यूनतम दृष्टिकोण (minimalist approach) लाना जरुरी हो गया है। जिसके चलते अगर हम अपनी जरूरते (needs) और मंशा (desires) का योग्य तालमेल रखना सिख ले तो किसी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इन बदलाव और liabilities के चलते कभी कभी जीवन में रूचि खो जाने की अनुभूति हो सकती है। सालो से हम जो routine जिंदगी जी रहे होते है और अचानक जिंदगी और मध्यम उम्र (middle age) के इस पड़ाव में हम जो कर रहे है, उसे छोड़ हमारी मन में दबी हुई आशा आकांक्षाओंको पूरा करने का मन हो सकता है।
उम्र के इस पड़ाव के depression से बचने केलिए निचे दिए लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है:
- बेचैनी, तनाव या चिड़चिड़ापन महसूस होना।
- निराशावादी या निराशाजनक महसूस होना।
- सोने के समय में या आदतों में बदलाव आना।
- खाने की आदतों में बदलाव आना।
- बार बार सरदर्द या पेट में पचन की समस्या का अनुभव होना।
- मनपसंद चिजे या शौक पुरे करने में रूचि खो देना।
- अपराधी,बेकार या मजबूर महसूस होना।
- अपने पती या पत्नी के प्रति काम भावना का आभाव महसूस करना या रूचि खो देना ।
- आत्महत्या के विकार मन में आना या प्रयास करना।
इसका उपाय निश्चित ही थोडासा जीवन शैली (life style)में बदल लाकर किया जा सकता है। उसके इलावा व्यवहार चिकित्सा और बात करना (behavior & talk therapy) इनसे भी इस समस्या का निवारण हो सकता हैं।
कोरोना के महामारी का संकट पुरे जग पर फ़ैल चुका हैं। पर कोई भी संकट अगर १००% बुरा असर छोड़ती हैं तो जाने अनजाने कुछ अच्छी चिजे भी कर जाती हैं। कोरोना महामारी में work from home कार्यपद्धति ज्यादा से ज्यादा स्तर पर लागु की गयी। स्कुल, कॉलेज भी बंद हो गये और online schooling शरू कर दिया गया। पर एक चीज इस lockdown में हुई है और वो है की परिवार के सदस्यों को एक साथ वक्त बिताने का अवसर मिल गया। घरो घरो में working moms को अपने काम का schedule संभालकर अपने बच्चों की पसंद न पसंद पर ध्यान देने का ज्यादा समय मिला। YouTube पर देख कर अपनी बच्चोंके मनपसंद recipes, उन्हें पका कर खिलाने का अवसर मिला। अपने खुद के पाक कला कौशल (cooking skills) का आविष्कार भी हो गया। Dads ने भी अपने बच्चोंं के साथ Carrom, Ludo, Video Games खेलना शुरू कर दिया। Senior Citizens को कोरोना का प्रदुर्भाव जल्दी होने के आसार होते है इसीलिए कई लोगोने अपने माता पिता को अपने घर बुला लिया जिससे बच्चों को दादा-दादी और नाना-नानी के साथ वक्त बिताने का अवसर और समय मिला। इसके वजह से कुछ समय तक शहरों में एकल परिवार (nuclear family) पद्धति में जी रहे लोगोने संयुक्त परिवार पध्दति का अनुभव लिया। Weekends में पूरा परिवार Netflix, Amazon Prime, Hotstar जैसे OTT Platforms पर एक साथ बैठकर फिल्मोंका आनंद उठाने लग गये। कोरोना महामारी का ये संकट तो चला जायेगा पर इस महामारी की वजह से घरोंघरों में जो संवादहीनता (communication gap) और उसके वजह से बढ़ता depression का संकट भी कुछ हद तक कम होने के आसार हैं।
आखिरकार हर नकारात्मक परिस्थति में कुछ न कुछ सकारात्मक ढूँढ लेना, उम्मीद बनाये रखना यही तो depression को दूर करने का गुरुमंत्र है।
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प्रौढ़ अवस्था (old age) में उत्पन्न होने वाले DEPRESSION के बारे में अगले हफ्ते,अगले blog The OLD AGE में पढ़िये, तब तक stay safe and healthy, MENTALLY & PHYSICALLY😊.
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे
Shrikant Bhelkar.
ReplyDeleteKunal ji, You are doing fabulous job by writing these blogs. I am sure that people will get some sort of positivity and a solution from your blogs....ALL THE BEST...!!!!
Thanks Shrikantji for regularly reading and acknowledging the blogs.👍😊
DeleteVery true and eye opener aspects have been generated due to the pandemic situation. People are vulnerable and have been habituated to the lifestyle causing both positive and negative effects on the peoples lives. & Emancipation. Building bond s & desired to keep values has become a matter of subject instead of fact. Hopefully everything goes well ends well.
ReplyDeleteAppreciating your concern according to highly expressive content.