BLOG POST 13: The SCHIZOPHRENIA (Part 01)
SCHIZOPHRENIA एक गंभीर स्वरूप का मनोविकार माना जाता है। ज्यादा तर शकी, विक्षिप्त, विध्वंसक, असामाजिक मिजाज के लोगों में SCHIZOPHRENIA के लक्षण पाए जाते है। वैसे तो SCHIZOPHRENIA १५ से ४५ के उम्र में होने वाली मानसिक बिमारी है। लेकिन ऐसी मनोवस्था बचपन के पारिवारिक या सामाजिक कटु अनुभव या आनुवंशिकता की वजह से भी विकसित हो सकते है।
SCHIZOPHRENIA के कुछ मरीज SCHIZOID स्वभाव के होते है। ऐसे लोग प्रेम, माया, अपनापन, आस्था इन भावनाओंसे दुर रहना पसंद करते है। बचपन मे पारिवारिक या सामाजिक तौर पर नजरअंदाजगी, अवहेलना, तिरस्कार या जरूरत से ज्यादा क्रोध का सामना कर चुके व्यक्ति का स्वभाव SCHIZOD प्रकृति का बन सकता हैं। इसी वजह से, बड़े होने पर लोगों से इसी प्रकार के बर्ताव की मानसिकता उनमे विकसित हो जाती है। इसीलिए लोगों द्वारा नजरअंदाजगी और अवहेलना का बर्ताव होने से पहले ही उनसे बिना घुलेमिले, दूर रहकर एक अंतर बनाये रखना वो पसंद करते है। लोगों से संपर्क ही टल गया तो बर्ताव में निराशा भी नहीं होगी ऐसे सोच वे बना लेते है। पर इसकी वजह से ऐसे इंसान अच्छे लोगों के प्यार और अपनेपन से भी वंचित हो जाते है।
SCHIZOPHRENIA के मुख्य चार प्रकार होते है:
२) HEBEPHRANIC OR DISORGANIZED SCHIZOPHRENIA: आम लोगों में पागलपन की जो व्याख्या होती है, ऐसे मरीज इस श्रेणी में आते है। वे खुदसे हस्ते हुए, इशारो में बाते करते हुए पाए जाते है।
३) CATATONIC SCHIZOPHRENIA: इस लक्षण में शारीरिक हलचल विचित्र और विक्षिप्त हो जाती है। स्वभाव में बेचैनी और मंदी महसूस होती है। इसके तीव्र अवस्था या लक्षण को STUPOR कहा जाता है। इसमें मरीज का शरीर अकड़ जाता है। एक ही जगह पर मरीज बिना हिले, बिना बात किये, बिना खाये-पिये, बिलकुल एखाद पुतले की तरह स्तब्ध हो जाता है। ये अवस्था दिखने में भयानक लग सकती है। ECT (Electroconvulsive Therapy) से मरीज को ढीला किया जाता है और फिर मरीज normal जिंदगी जीने लगते है। इसके झटके MANIA या BIPOLAR DISORDER की तरह कुछ अंतर के बाद आते है। ये अंतर् महीनो एवं सालों का भी हो सकता है। लेकिन दो झटकों के बिच के अंतर में मरीज की मानसिक स्थिती बिलकुल ठीक रहती है। लगातार आने वाले झटकोंको दवाई के सहारे काबू में रखा जा सकता है।
इन सारे प्रकारो के मुख्य लक्षण विचार, भावना और इच्छाशक्ति की विकृति होती है। इसलिए इन चारों प्रकारों में फरक करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इंसान को हर पल हो रहे असंख्य संवेदनाओं मे से अनचाहे संवेदनाओं को छानकर उपयुक्त संवेदनाओंको जागरूक रखने का काम दिमाग की यंत्रणा करते रहती है। जब दिमाग की ये छानने की यंत्रणा बिगड़ जाती है तो इंसान SCHIZOPHRENIA का शिकार हो जाता है। SCHIZOPHRENIC मरीज का क्रोध, शक या उनका आलसी बर्ताव जानबूझकर नहीं होता। लेकिन रिश्तेदार, दोस्त, परिवार वालों को उनका इस प्रकार का व्यवहार हेतुपूर्वक होने की गलतफहमी हो जाती है। एक तरफ ऐसी मनोवस्था और दूसरी तरफ प्रियजनों का ऐसा नजरिया SCHIZOPHRENIC मरीजों को और बिमार बना सकता है।
इंसान के कान, नाक, आँखे, उसकी त्वचा उसके आसपास के चीजों के हलचल की जागरूकता कराते रहते है। लेकिन फिर भी वो इंसान जो मुख्य काम कर रहा होता है उस पर से उसका ध्यान हटता नहीं है। यही इंसान के तंदुरुस्त मानसिक अवस्था के लक्षण होते है। कोई भी तंदुरुस्त इंसान जब एक काम करता हो, तो आस पास की घटनाओं का उसपर असर नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर जैसे अगर कोई इंसान किताब पढ़ रहा हो, तो उसे अपने रुम के fan के घूमने की आवाज, आसपास के लोगों के बात करने की आवाज कानोंपर पड़ती तो है, लेकिन किताब से उसका ध्यान भटकता नहीं है। अगर कुछ वक्त केलिए ध्यान भटक भी जाए तो उसे लोगों की बाते, fan के घूमने की आवाज सुनाई देती है, fan की हवा महसूस भी होती है लेकिन ये सारे संवेदना धुंधले होते है। इससे उसका किताब से ध्यान भटकता नहीं है। SCHIZOPHRENIA के मरीजों में ये बाहरी आवाज और संवेदना ज्यादा प्रबल हो जाते है। इसिलिये वो मरीज अपने मुख्य कार्य पर ध्यान नहीं दे पाता है और बाहरी संवेदनाओंसे परेशान हो उठता है।
SCHIZOPHRENIA की मानसिक अवस्था में विकृति की वजह से संबंधों और रिश्तों में दुरी आ सकती है। मरीज अपने ही परिवारजनों और दोस्तों से दूर रहने लगता है। शक और डर की वजह से वो किसी पर विश्वास नहीं रख पाता है। उन्हें कृपया blog संबंधित सुझाव और comments केलिये निचे दिए विल्पोमें से एक चुने :
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