Blog Post 09: The PHOBIAS: Part 02
PHOBIA के मरीज हर आयु वर्ग में पाए जाते है। बच्चे भी अपवाद नहीं है। वैसे हर उम्र की अपनी अपनी डर की अलग समस्या हो सकती है। बचपन में स्कुल जाने से बच्चे कतराते हैं, उन्हें स्कुल जाने के टाइम पर अचानक पेट दर्द होने लगता है। ये डर एक नए वातावरण में घुलमिल जाने तक बना रहता है। कुछ समय बाद जब बच्चे स्कुल के वातावरण से जुड़ जाते है तो उनके मन में बैठा डर भी चला जाता है। विद्यार्थी दशा में परीक्षा या रिझल्ट के दिनों में कुछ ऐसा ही डर का सामना हर इंसान करता हैं। उस वक्त अगर परीक्षा टल जाए या रिझल्ट की तारीख आगे हो जाए तो उन्हें उस दिन बहोत सुकून मिलता है। मध्यम उम्र (middle age) में दूसरों पर जैसे office में boss पर अपना प्रभाव बनाने की जगतोजहत का डर और बुढ़ापे में शारीरिक तक्लीफों से झुंझने या अकेलेपन की सोच ये सब डर के मुख्य कारण बन सकता है।
सारे PHOBIAS में एक चीज समान है जिसे मनोविज्ञान में PHOBIC THING कहते हैं। ये PHOBIC THING जब कुछ समय केलिए टल जाती है या postpone होती है तो इंसान बहोत हल्का महसूस करता है। जितना PHOBIA तीव्र होगा उतना ही उसे टालने की कोशिश भी तीव्र होगी। जैसे किसी इंसान को लोकल ट्रेन से यात्रा करने का PHOBIA हो जाए तो वो इंसान तीन गुना पैसा और चार गुना वक्त खर्च कर के यात्रा का कोई अलग विकल्प ढूंढ लेता है। किसी को बिमारी का डर हो जाए तो वो अपना checkup टालते रहता है। पर ये एक अस्थायी विकल्प (time being option) होता है। इससे उस PHOBIA से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। अब ये तो स्पष्ट है की एखाद किसी घटना या वस्तु के अनुभव के कारण मन में उसकी कटु याद बस जाती है। फिर वर्तमान या भविष्य में अगर वैसी ही किसी परिस्थिति या चीज का अनुभव आता है तो इंसान का उससे जुड़ा वो डर सक्रिय (activate) हो जाता है। मनोविश्लेषण में इसी अवस्था को CONDITINING कहा जाता है।
जैसे किसी भी मनोविकार से पीड़ित इंसान पर विश्वास करना जरुरुी होता है वैसे ही PHOBIA से ग्रस्त इंसान पर उसके PHOBIA पर विश्वास कर के उसे सहायता केलिए इलाज के पात्र बनाना जरूरी होता है। उसके डर का मजाक उड़ाने पर वो इंसान अकेलापन महसूस कर सकता है। इसीलिए उस इंसान को दिलासा देना, उसका मजाक उड़ाए बिना, उसमे भरोसा और आत्मविश्वास पैदा करना तथा चिंता और दुःख कम कर के दवाइयों से मन शांत करना जरूरी होता है। इसीलिए मनोविज्ञान में हाल ही में BEHAVIOUR THERAPY विकसित हुई है। PHOBIA एक जाने अन जाने, फिजूल बढ़ावा दिया डर होता है। इस therapy में PHOBIC THING से जुड़ा या PHOBIC परिस्थिति में मन शांत रख कर क्रमश:(step-by-step) डर दूर किया जाता है। उदाहरण के तौर पर:१) अगर किसी व्यक्ति को किसी एक चीज का PHOBIA जुड़ चुका हो तो वो चीज करते समय सिर्फ उसी चीज पर ध्यान देने के बजाय वो काम करते समय थोडासा ध्यान भटकाने केलिए कुछ और कार्य अगर किया जाए तो जिस चीज का PHOBIA जड़ चुका होता है उससे उस इंसान का focus हट जाएगा और धीरे धीर इस तरह से उसका उस चीज से जुड़ा डर खत्म हो सकता है।
२) किसी को भीड़ भरी ट्रेन में चढ़ने का PHOBIA जड़ा हो तो शरुवात करते समय लोकल ट्रेन के प्रवास के अनुभव में जिस चीज से सबसे कम डर लगता हो और किस चीज का ज्यादा डर लगता हो उसकी एक सूचि बनानी पड़ेगी। जैसे भीड़ भरी ट्रेन में चढ़कर बैठने का डर सबसे ज्यादा हो सकता है, फिर रुकी ट्रेन में चढ़कर बैठने का डर थोड़ा कम हो सकता है, स्टेशन पर खड़े रहकर दूर से आती ट्रेन को देखने का डर उससे भी कम हो सकता है। घर पर शांत मन से दूर से आते ट्रेन के आने वाले दृश्य की कल्पना करने पर उनका पहले पड़ाव का डर निकल जाएगा क्योंकि उनका मन अब पहले से शांत है। फिर क्रमश: ट्रेन के एक एक चित्र की कल्पना करते करते धीरे धीरे ट्रेन में चढ़कर बैठने का हर पड़ाव का डर मिटाया जा सकता है।
३) किसी व्यक्ति को उंची जगह से डर लगता हो तो वो इंसान आँखे बंद कर के, शांत मन से एक एक सीढी चढ़ने की कल्पना कर सकता है । और कल्पना में एक एक सीढी पर जीवन के अच्छे पलों को याद कर सकता है। कल्पना में ऊँची सिढी पर धीरे धीरे चढ़ने के बाद सराव से वास्तव में उसका ऊंचाई पर चढ़ने का डर निश्चित खत्म हो सकता है।
इस क्रमश: उपचार पद्धती को PROGRESSIVE DE-SENSITISATION कहते है। ये प्रयोग निश्चित ही आसान नहीं है और इस के लिए नियमित सराव करते रहना जरूरी है। मरीज डर की शिकायत करते है लेकीन उस डर का मुकाबला करने की तयारी, हिम्मत और वक्त देने केलिए तयार नहीं होते। पानी में उतरे बिना तैरना कैसे सिख सकते है? मन में पानी में डूबने का डर कैसे निकाल सकते है? लेकिन "पहले तैरना सिखाओ फिर पानी में उतरेंगे" ये सोच तो कोई विकल्प नहीं हो सकता।
वैसे तो PHOBIA का इलाज, परिस्थिति अनुसार किया जाता है पर पाश्चात्य देशों में एक नई थेरपी विकसित हुई है जिसे ORIENTATION REFLEX कहा जाता है। इंसान का ध्यान बटाने या हटाने केलिए किसी क्रिया का उपयोग कर के डर या चिंता से उसका ध्यान हटाया जाता है। इंसान के senses पर लाखो करोड़ो उत्तेजक पदार्थों का मारा होते रहता है। जैसे की अलग अलग प्रकार के आवाज इंसान के कानों पर पड़ते रहते है लेकिन हर एक आवाज पर इंसान का ध्यान नहीं होता। वो किसी मर्यादित आवाजों पर ही ध्यान दे सकता है। ORIENTATION REFLEX therapy में हमे क्या सुनना है, हम क्या देख सकते ये तय किया जाता है। कोई बहोत बड़ी आवाज या कोई अचानक हुई हलचल या कोई सुखद या दुखद अनुभव इंसान का ध्यान नैसर्गिक तौर पर खिंच लेता है। समझो किसी अस्पताल में आप checkup केलिये आये हो और उस checkup की वजह से, reports क्या आयेंगे इस ख्याल से आप के मन में बैचैनी हो, और उस वक्त अगर आपके बगल में कोई माँ अपने नन्हे से cute बच्चे को लेकर बैठ जाती है और वो बच्चा आप के साथ घुलमिल जाता है तो कुछ देर तक आप checkup से जुड़े बेचैनी और डर को भूल जाते है।
दुसरा विकल्प (option) ये है की डर के वातावरण में सुखद या कोई भी शारीरिक थकावट का अनुभव देने वाले क्रिया पर ध्यान देंगे तो डर पर आपका ध्यान नहीं रहेगा और आप तनाव मुक्त हो सकते हो। उदाहरण के तौर पर किसी इंसान को अगर घर से बाहर अकेले निकलने का डर सता रहा हो तो और डर की तीव्रता बहोत ज्यादा हो, तो घर पर थकावट महसूस होने तक चलते रहना चाहिए। या हो सके तो उस इंसान को किसी दोस्त को साथ लेकर बाहर निकलना चाहिए। फिर उस दोस्त से बातों में उलझने की वजह से अकेले बाहर निकलने के डर से उस इंसान का ध्यान हट जाएगा और धीरे धीरे उसका डर भी खत्म हो सकता है। या फिर आप हिम्मत कर के घर से बाहर अकेले निकले तो आप को मोबाइल पर अपने पसंदीदार गाने सुनते हुए, थकावट होने तक चलना-फिरना चाहिए। गानों के वजह से आप का डर से ध्यान हट जाएगा और थकावट की वजह से आपका दिमाग और शरीर आराम करना चाहेगा जिससे डर के बारे में सोचना बंद हो सकता है।
डर पर मात करनी हो या उसे दूर करना हो तो डर का सामना करना ये एक ही समझदारी का विकल्प है। इस केलिए अगर किसी चीज, परिस्थति का डर लगे तो पहले उसे अपना लो, फिर किसी अपने नजदीकी इंसान को अपने डर और बेचैनी के बारे में खुल कर बताओ। कोई अगर अपनी बेचैनी बाँट रहा हो तो उसका मजाक उड़ाए बिना उसे शांत कर, उसकी अवस्था को समझो, उसमे उस डर से मुकाबला करने केलिए हिम्मत और उम्मीद जगाओ। PHOBIA का मानसिक बिमारी में रूपांतर होने से पहले अगर हम ऐसे व्यक्ति को समझ कर अपना ले और उसका साथ दे तो निश्चित रूप से उस इंसान को DEPRESSION में जाने से बचाया जा सकता है।
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