Blog Post 08: The PHOBIAS: Part 01


FEAR / डर / भय और क्रोध (ANGER) ये सब एक अनैच्छिक (involuntary) प्रतिक्रिया हैं। एक ऐसी भावना जो इंसान को खबरदार बनाती है। किसी संकट से बचने केलिए डर या क्रोध ही इंसान को सजग करता है । इसीलिए कुछ हद तक मन में डर और क्रोध का होना जायज होता है। दोनों सूरतों  में ये कार्य Andrenaline नामक hormone करता हैं। जब हमे डर लगता है या क्रोध आता हैं तो शरीर में andrenaline का प्रमाण बढ़ जाता है, जिसके वजह से दिल की धड़कन और सांस तेज होती है,  शरीर में खून का प्रवाह जोर से होने लगता है, आँखों की पुतलिया बड़ी होकर नजर तीक्ष्ण हो जाती हैं, रोंगटे खड़े हो जाते है। ये सारे बदलाव इंसान के मन को सामने आई परिस्थति का सामना करने केलिए सजग बनाती है।  जैसे ही संकट टल जाता है, ये सारी  शक्ति शरीर पर उलटा परिणाम करती है। जिसकी वजह से दिल जोर से धड़कता है, पसीने छूटने लगते है, फड़फड़ाहट होती हैं, गला सुखने लगता है। क्रोध के झटके (Panic Attack) से होते मानसिक तनाव और बदलाव के बारे में आगे के blogs में जानकारी देने का प्रयास जरूर रहेगा, फिलहाल डर के बार में जानकारी।  

किसी भी भावना की तरह ये डर भी एक भावना है। जिंदगी अगर बेडर जीने लगे तो हमारे कर्तुत्व पर कोई लगाम नहीं होगा। मन में कुछ हद तक अनिश्चितता का डर हमे कार्यतत्पर रखता है। लेकिन मन या दिमाग में किसी भी अच्छी भावना का जरूरत से ज्यादा घर करना जैसे घातक हो सकता है वैसेही डर का भी जरूरत से ज्यादा मन या दिमाग में घर करना घातक साबित हो सकता है। इसका परिणाम इंसान की रोज मराह की जिंदगी पर हो सकता है। तो इसी डर को काबू करना हमारे हाथ में होता है और समय के चलते अगर ऐसा नहीं किया गया तो जो अवास्तविक (unrealistic) डर मन या दिमाग में बैठ जाता है उसी को मनोवैज्ञानिक भाषा में PHOBIA कहा जाता है। PHOBIA वैसे बेवजह मन में उत्पन्न होता बेहद डर होता है। 

डर सिर्फ जिंदगी के अनिश्चितता, नौकरी का, परिवार के ख्याल रखने का, बच्चों के अच्छे परवरिश के बारे में नहीं होता। डर किसी भी चीज का, किसी भी बात का, किसी भी परिस्थिति के अनुभव का, किसी इंसान के बर्ताव का, भूतकाल में किसी घटना से जुड़ा हुआ, किसी सुनी सुनाई खबर का हो सकता है। इन सारे बातों से जुड़ा डर इंसान के दिमाग में बस जाता है। ऐसी अवस्था को मनोविज्ञान में PTSD (POST TRAUMATIC STRESS DISORDER) कहा जाता है। जब उस डर से संबंधित किसी भी हालात, व्यक्ति, किसी चीज या कोई अनुभव का सामना अचानक हो जाता है तो इंसान का उससे जुड़ा मन में बैठा डर सक्रिय (activate) होता है। ये डर बिलकुल भी पल दो पल का भी हो सकता हैं । ऐसी अवस्था में, इंसान उस हालात से बचने का या छुटकारा पाने की कोशिश करता हैं और जैसे ही उसे छुटकारा मिलता है वो इंसान बिलकुल भी Normal व्यवहार करने लगता है। कभी कभी जाने अनजाने में किसी इंसान से उसके घर पर या अपनी गाडी को lock  करने में या अपने बटवे में पैसे या credit cards ठीक तरह से रखने में थोड़ी बेपर्वाही हो जाती है। अब ऐसी लापरवाही से कोई दुर्घटना हो सकती थी इसका अहसास होने के बाद, एक अपराधी भावना उस इंसान के मन में बैठ जाती है। फिर जब कभी उस इंसान पर घर या किसी भी जगह को बंद कर के ताला लगाने की जिम्मेदारी आती है तो वो इंसान बहोत बेचौन हो उठता है। ऐसी सूरत में या तो वो इंसान ऐसे जिम्मेदारी उठाने से कतराता है या फिर ताला लगाने के बाद बार बार जाँच कर के तसल्ली करते रहता है।  किसी जगह credit या debit card से payment  करने के बाद बार बार अपने बटवे में card बराबर रखा है या नहीं इसकी जाँच करते रहता है। 

कभी कभी कुछ डर के बीज इंसान के बचपन से ही उसके मन में बोये जाते हैं। बच्चों को अनुशासन सिखाने के बहाने माता-पिता या रिश्तेदार पोलिस, डॉक्टर, अंधेरा, injection, कहानी के किसी किरदार का वर्णन करके उनके मन में डर बिठाते हैं या बड़े बुजुर्गों से इन सब के बारे में डरावने किस्से सुनकर बच्चे भी मन में डर बिठा लेते है। कुछ डर नैसर्गिक तौर से इंसान से जुड़े होते है। जैसे छोटे बच्चे जब पहली बार स्कुल जाते है तो अपने माँ को छोड़कर एक नये वातावरण में जाने का डर उनके मन में होता हैं। वो स्कुल जाने से कतराते है, पेट दर्द वगैरे जैसे बहानेबाजी करते है। लेकिन धीरे धीरे उन्हें उस वातावरण की आदत पड जाती है और मन में पनपता डर भी गायब हो जाता है ।  

किसी भी जटिल परिस्थति का सामना करने के बजाय हार मान कर बैठने वाले इंसान के डर का रूपांतर आसानी से PHOBIA में हो जाता है। किसी भी डर का मूल स्वभाव दिमाग में संरक्षक व्यवस्था (safety arrangement) का होता है। ये संरक्षक व्यवस्था मज्जासंस्था (nervous system) से जुड़ा होता है। इस system में कुछ गड़बड़ हो जाए तो विकृत डर पैदा हो सकता है। इसी  विकृत डर को PHOBIA कहते है।

PHOBIA के कुछ प्रकार और उनसे जुड़े डर के बारे में कुछ जानकारी  देखते है:

१) CYNOPHOBIAसाधारण तौर पर अगर राह चलते हुए अचानक कोई कुत्ता सामने आकर भौंकने लगे तो हम डर कर अपना रास्ता बदल देते है। ऐसे परिस्थिति में डर बचाव का काम करता है। पर अगर ऐसी एक परिस्थिति की वजह से अगर कुत्तों का डर दिमाग या जहन में बैठ जाए और किसी भी कुत्ते को देखकर वो इंसान डरने लगे तो उसकी अवस्था PHOBIA के श्रेणी में आ सकती हैं। ऐसे PHOBIA को  CYNOPHOBIA कहते है।  

२) AGOROPHOBIAकभी कभी किसी इंसान को किसी सार्वजनिक जगह पर  भीड़ का कुछ भयानक सा अनुभव आता है। वो अनुभव उसके जहन में इस तरह घर कर लेता है की फिर वो किसी भी भीड़-भाड़ वाली जगह पर जाने से कतराता है। ऐसे PHOBIA को AGOROPHOBIA कहते है। 

३) ACROPHOBIA: ऊंचाई का डऱ। 

४ ) CLAUSTROPHOBIA: कभी कभी अगर lift बंद होने के वजह से आप घंटो lift  में फंस जाये तो ऐसे घटना से बंद, छोटी संलग्न (enclosed) जगहों पर अकेले या भीड़ के साथ फंसने का PHOBIA विकसित हो सकता है जिसे CLAUSTROPHOBIA कहा जाता है। 

५ ) MYSOPHOBIA | GERMOPHOBIA  : किसी भी जगह पर जंतु (germs) या गंदगी होने का अहसास होना और उसे बार बार धो कर या कपड़े से पौंछ कर साफ़ करने की कोशिश करते रहना। ऐसे स्थिति में खुद को साफ़ सुथरा रखने के इरादे से इंसान बार बार अपने हाथ धोते है या दिन में ३-४ बार नहाते है। 

६ ) SOCIAL PHOBIA: सामाजिक परिस्थतिया (social situations) का PHOBIA, जिसमे इंसान किसी भी सामजिक अवसर पर जाने से डरने लगता है। ऐसी परिस्थतिया उसे बेचैनी महसूस कराने लगती हैं। 

७ ) ACROPHOBIA: Cockroach, मक्खी  या ऐसी किसी भी किटक का PHOBIA है। ज्यादातर ये औरतों में पाया जाता है।  

८) NYCTOPHOBIA: अंधेरी जगहों में कुछ दुर्घटना के अनुभव से अँधेरे का डर मन में बैठ जाता है ।

 ९) NOSOPHOBIA: बिमारी का डर। किसी बिमार इंसान को मिलने के बाद या संपर्क में आने के बाद कही खुद को वो बिमारी ना हो जाए इसकी फ़िक्र या डर। दिल की या कैंसर की बिमारी से भी काफी लोग इस PHOBIA के शिकार होते है। सीने  में मामूली सा दर्द  (जो acidity से भी हो सकता हैं )उन्हें दिल का दौरा पड़ने की संभावना लगती है और वो बेचैन हो जाते है। आज कल के COVID-19 के महामारी के चलते ये PHOBIA काफी लोगों में विकसित होने की संभावना हो सकती है। 

१०) ERGOPHOBIA: काम करने का PHOBIA। जीवन में कभी कभी जाने अनजाने इंसान से काम करते वक्त कुछ गलती हो गयी हो जो मामूली भी हो सकती है और उसके boss से उसे फटकारा गया हो या किसी और की गलती का इल्जाम उस इंसान पर आ जाता है तो दिमाग में उसका डर और उस अनुभव की प्रति एक कटु छबि छप जाती है। ऐसे सूरत में, उस तरह का काम अगर सामने आ जाये या फिर करने की नौबत आ जाये तो उस इंसान का मन में  छिपा डर उभर कर सामने आता है और उसे बेचैनी महसूस होती है। वो उस काम से भागने या टालने की कोशिश करता है।  

विश्वास करना मुश्किल है पर इन चुनिंदा १० PHOBIA के इलावा, प्राकृतिक वातावरण (natural environment), परिस्थति जन्य (situation based) और medical treatment के आधार पर अनगिनत तरह के PHOBIA मनोविज्ञान में सूचीबद्ध (listed) है। अधिक जानकारी केलिए इनके दिए link पर click  करें।

https://www.hitbullseye.com/Vocab/List-of-Phobias.php

किसी भी मनोवस्था का इलाज करने केलिए जैसे मरीज को खुद उसका स्वीकार (acceptance) होना  जरूरी होता है उसी तरह से इंसान को खुद उसे किस चीज का PHOBIA है और उस PHOBIA का स्वीकार (acceptance) होना बहोत जरूरी है। तभी वो  इंसान इलाज के तरफ अपना कदम रख सकता है। 

कृपया blog संबंधित सुझाव और comments केलिये निचे दिए विल्पों में से एक चुने:

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PHOBIA के इलाज के बारे में जानकारी अगले blog, PHOBIAS: Part 02 में। तब तक stay safe and healthy, MENTALLY & PHYSICALLY 😊. 
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे.

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