Blog Post 04: The TEENAGE
आजकल विद्यार्थी दशा, मुख्यत: किशोरावस्था (teenagers) १३ से १९ के उम्र की युवा पिढ़ी इस समस्या का ज्यादातर सामना कर रही हैं। पर इसकी शुरुवात कही न कही बालवस्था में होती हैं।आजकल के माता पिता अपने बचपन या जवानी में उनके माता पिता के परिस्थति चलते कुछ उपलब्धियोंका आनंद नहीं उठा पाते हैं। वही उपलब्धियाँ अपने बच्चों को बचपन से देने का उन पर एक जूनून सा संवार हुआ होता है। कुछ हद तक ऐसी भावना अपने बच्चों के प्रति लाजमी है, लेकिन उसकी भी एक हद तय करना बहोत जरूरी है।
इंसान की नैसर्गिक फितरत है की जो चिज उसे आसानी से मिलती है उसकी कदर उसे कभी नहीं होती। फिर बच्चे कैसे अलग हो सकते है। Easy Availability की वजह से किसी चिज को पाने केलिए जो संघर्ष लगता हैं उसकी भनक भी उन्हें नहीं होती। जो मांगो वो मिल जाता हैं, इस मानसिकता की वजह से उन्हें जीवन में कभी "ना" सुनने की, स्विकार करने की या हार मानने की आदत ही नहीं होती। बहरहाल उनकी मानसिकता ऐसी विकसित हो जाती है। किसी भी प्रकार का इंकार वो दिल पर लगा ले लेते है। उनके अहंकार को चोंट पहुंचती हैं ।
कुछ बच्चे मूल्यत: होशियार, हरफनमौला (all rounder) होते है। उनकी हमेशा, हर जगह वाह वाही होती रहती है। पर इसका मतलब ये नहीं की जीवन की हर स्पर्धा में वो अव्वल ही आयेंगे। अगर कही किसी स्पर्धा में वो अगर दुय्यम स्थान पर आ गये या हार गये तो उस हार को खेल भावना (sporting spirit) से स्वीकार करने की मानसिकता भी होनी जरुरी हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता और बच्चे वो हार बहुत ही दिल पर लगा लेते है।ऐसे समय में माता-पिता का उनको समझना जरूरी होता है। पर वो आज तक जो सुख सुविधाए दी गयी हैं उनकी ग्वाही देते हुए, बच्चोंकी हार के वजेह से कैसे उनका नाम, उनकी प्रतिष्ठा धूल में मिल गयी इसका उल्टा एहसास कराते रहते है। इस वजह से माता-पिता के उम्मीदों पर खरा न उतरने की अपराधी भावना उनके मन में घर कर लेती हैं। दसवीं-बारवी के results के दौरान ये कहानी हर घर में दिखाई देती है। इसी काल में ज्यादातर teenagers के आत्महत्या के cases पाये जाते है। उम्मीदों पर खरा न उतरने की अपराधी भावना या तो उनका स्वभाव आक्रमक बना सकती हैं या फिर उम्र भर केलिए वो अपना आत्मविश्वास खोकर हार मान सकते है।दोनों सूरतों में आगे जाकर वे Depression के शिकार हो सकते हैं।
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किशोरावस्था (teenage) उम्र का बड़ा ही नाजुक मोड़ होता हैं। काफी नई चिजे जानने की चाह होती हैं। मन बगावत करने पर तुला होता हैं। ऐसे उम्र में माता-पिता को उनसे माता-पिता के किरदार से बाहर निकल कर एक दोस्त की तरह उनसे बर्ताव करना चर्चा जरूरी होता है। पर माता-पिता अपनेही विश्व में मशगूल होते है। उनके पास अपना वक्त देने के आलावा दुनिया की सारी सुख-सुविधाये देने की तयारी और व्यवस्था होती हैं। घर पर समझने वाला, बात करने वाला कोई नहीं होता। इसीलिए फिर बच्चे बाहर अपना सहारा ढूंढने लगते हैं।ऐसी सूरत में अगर अच्छी संगत मिली तो ठीक हैं । अगर ऐसा नहीं हुआ तो बुरी आदतों की लत भी लग सकती है। उन लतों के जरिये वो अपने तनाव को, अपने अकेलेपन को दूर करने का साधन बना सकते हैं, उसीमे खो सकते हैं और व्यसनी बन सकते हैं।
इसी उम्र में विपरीत लिंग (opposite gender) के बारे में मन में उत्पन्न होती भावनाये, आकर्षण और मोह को बच्चे प्रेम समझने की गलती कर बैठते हैं। इसी संभ्रमित मनोवस्था में अगर अनके पसंदीदार व्यक्ति ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया तो जिंदगी वही खत्म हो गयी ऐसे समझ कर या समाज माध्यमों के प्रभाव से कोई जानलेवा कदम उठा सकते है।
इसी उम्र में युवा पिढी बदमाशी (Bullying) का शिकार भी होती हैं। इस bullying में Verbal bullying, Cyber Bullying या Body Shaming जैसे प्रकार होते हैं । ये बदमाशी ज्यादातर बाह्य रंग रूप, जात-पात, sexual orientation, शारीरिक व्यंग या बुद्धिमत्ता के आधार पर किया जाता हैं।
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आजकल internet विश्व इतना फ़ैल चूका है की एक क्लिक पर हम पूरा विश्व का घर बैठे अनुभव ले सकते है। युवा पीढ़ी तो techno savvy होती है। जिस छोटी उम्र में संस्कार के तौर पर बच्चों को उनके दादा-दादी या नाना-नानी भगवान के स्तोत्र पढ़ाते थे उसी छोटी उम्र में वही बच्चे उलटा दादा-दादी या नाना-नानी को whatsapp, facebook, twitter, youtube को operate करना सिखा रहे है। ये नि:संदेह बहोत ही प्रशंसनीय बात हैं। पर समस्या ये है की युवा पीढ़ी उसी आभासी दुनिया (virtual world) को असली दुनिया (real world) समझने लगी है। क्योंकि घर पर वार्तालाप (communication) ना होने के वजह से बच्चे web world में अपने परिवार ढूंढने लग गये है। इसी वजह से वो Phishing, Stalking, Bullying, Video या Computer Gaming, Pornography जैसे cyber crime के शिकार हो रहे हैं। इसकी शुरुवात एक thrill से होती है पर जब वही thrill उलटा पड़ता है तो उसका तनाव depression को जन्म देता है। २०१३ में Russia में विकसित हुआ प्रख्यात Blue Whale Challenge इस video game ने लगबग १०० युवाओं की जान ली हैं। रिसर्च में ये पता चला की ये game खेलने वाले सारी युवा पीढ़ी किसी न किसी मानसिक तनाव और अकेलेपन से गुजर रहीं थीं ।
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बच्चे जब छोटे होते है, जब वो ठीक तरह से बोल भी नहीं पाते, उस उम्र में अपने माता-पिता के साथ वक्त बिताने की उनकी छोटीसी चाह होती है और ये चाह एक विशिष्ट उम्र तक ही होती है। इसी उम्र में किसी भी संकट में माता-पिता हमारा साथ देंगे, हमारे पीछे डटकर खड़े रहेंगे ये विश्वास उनके मन मे पनपता है। पर दुर्भाग्यवश माता-पिता उन्हें शिशु गृह (creche) में भर्ती कर अपना career सँवारने में लगे रहते है। इस वजह से फिर घर-घर में संवादहीनता(communication gap) जन्म लेती है। जिसके वजह से यही बच्चे आगे किशोर अवस्था में, या तो आक्रमक या शांत प्रवृत्ति के हो जाते हैं। उनमे एक प्रकार की निर्णय क्षमता विकसित होती हैं। ये निर्णय क्षमता अच्छी भी हो सकती हैं पर गलत तरिके से भी विकसित हो सकती हैं। वो खुद को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर समझने लगते हैं। जो बच्चे मानसिक स्तर पर सक्षम होते है उनकेलिए ये स्वातंत्र्य और आत्मनर्भरता बहोत फायदेमन सिद्घ हो सकती हैं। पर जो बच्चे मानसिक स्तर पर सक्षम नहीं होते उनके निर्णय चुकने की संभावना होती हैं। उन्हें निर्णय लेने केलिए आधार की जरूरत पड़ सकती हैं।
माता-पिता को बच्चों का ऐसा व्यवहार समज नहीं आता। वे बच्चोंके साथ बात करने की कोशिश करते हैं। लेकिन अब उम्र के चलते बच्चों को अपने माता-पिता के साथ वो comfort level महसूस नहीं होती। क्योंकि इसके पहले इस प्रकार का कोई संवाद कभी उनमे नहीं हुआ होता हैं। बचपन से माता-पिता की अनुपलब्धि के वजह से उनको अपने सूझभूज के अनुसार सही-गलत निर्णय लेने की आदत पड चुकी होती है। इसीलिए अब बिना कुछ चर्चा किये, परिणामोंका विचार किये बिना, उस वक्त जो सही लगे उस हिसाब से वो अपना सही-गलत निर्णय ले लेते है। वो अपने आप को आत्मनिर्भर समझने लगते है।
Selfie नामक प्रकार teenagers में बहोत ही प्रचलित हैं। Smart Phones में dual camera सुविधा के वजह से, मजे के तौर पर शुरू हुई ये एक चीज, आज कुछ हद तक जानलेवा और मानसिक बिमारी का लक्षण होने का प्रमाण सामने आया हैं। Selfie लेना ये अब एक style के इलावा बाहरी दुनिया की उपेक्षा (ignorance) से जन्मी एक मानसिक बिमारी साबित हुई है। दुनिया या हमारे आसपास के लोग हमारा व्यक्तिमत्व या अस्तित्व नजरअंदाज कर रहे है, इस ख्याल से उनके सामने उन्हे पसंद आने वाली अपने व्यक्तिमत्व या अस्तित्व की छबि रखने का ये एक मुर्ख प्रयास हैं। फिर social media पे post किये हुये उस Selfie पर मिलने वाले comments और Likes बार बार check करते समय मन की बेचैनी जन्म लेती है। उस post किये हुए selfie पर मनचाहे Likes अगर नहीं मिले या किसी ने कुछ अपेक्षा के विपरीत comment post कर दी तो घबराहट बढ़ जाती है और यही घबराहट आगे depressive behaviour में परिवर्तित हो सकती है।
Danny Bowman |
(विस्तृत जानकारी केलिए इस लिंक पर क्लिक करें ):
तातपर्य ये हैं की किशोर अवस्था में माता-पिता को अपने "माता-पिता" के भूमिका से बाहर निकल कर अपने बच्चों का "दोस्त" बनने की जरूरत होती हैं ताकि वे अपने बच्चों में, किशोर अवस्था (teenage) में हो रहे वैचारिक, शारिरीक और मानसिक बद्लाव को खुद भी समझ सके, अपना सके और बच्चों को भी समझा सकें। फिर बच्चे भी अपने मन में उठते सवालों का जवाब घर से बाहर, गलत तरिके से ढूढ़ने की कोशिश नही करेंगे।
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युवा अवस्था (young age) में उत्पन्न होने वाले DEPRESSION के बारे में अगले हफ्ते,अगले blog The YOUNG AGE में पढ़िये, तब तक stay safe and healthy, MENTALLY & PHYSICALLY😊.
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे
As usual Superb Kunal. This article was eye opener for parent like me, whose kids are in teenager now. Thanks for this guidance and knowledge.
ReplyDeleteThanks for reading & acknowledging.The purpose is served😁
DeleteIts necessary that all the parents who have their children in teenage should be aware of the facts mentioned in the blog. So share it as much as possible.😊
कुणाल खुप छान ब्लाॅग . हल्लीचे पालक आहेत त्यांना चांगले मार्गदर्शन करणारा आहे . तुझे हिंदी भाषेवरील प्रभुत्व वाखाण्यासारखे आहे .👍
ReplyDeleteवाचल्या बद्दल धन्यवाद.आवडल्यास नक्की share करा.🙂
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