Blog Post 02: The FEELING


(The BLUES mood)
पिछले blog में BLUES का एक मनोवस्था के रूप में वर्णन किया था | इस blog  में BLUES या depression (अवसाद)में क्या महसूस होता है इसके बारे मे बताने की एक कोशिश रहेगी | सच कहा जाये तो इंसान depression  में कुछ महसूस ही नहीं करता | उसका मन शून्य अवस्था में होता हैं | वो कुछ सोच नहीं पाता, कुछ करना नहीं चाहता, किसीसे बात करना नहीं चाहता, आलसी सा हो जाता हैं | सिर्फ शांत पड़े रहना चाहता हैं | इसका परिणाम शारीरिक क्षमताओं पर भी होता हैं | कितने सारे cases में depressed इंसान घंटो तक, दिनों तक अपने रुम से, अपने घर से बाहर नहीं निकलना चाहता | ना कुछ सोच पाता हैं, ना कुछ बात कर पाता हैं, ना  किसी को कुछ समझा सकता हैं | एक ऐसी अवस्था जिसमे कभी कभी दिमाग और  मन में क्या चला रहा हैं ये ब्यान करना मुश्किल हो जाता हैं |  

काफी बार हम "feeling low" ऐसा कहते हैं | हम ही नहीं, पर हमारे दोस्त, सहकर्मी, हमारे परिवार में भाई-बहन, पिताजी,(माँ को छोड़ के क्योंकि उसे अगर ऐसा लगे भी तो ये कहना का कोई हक नहीं है, इस तरह से हमारा उनके साथ बर्ताव होता है...जो की समझना हैं की बहुत गलत हैं )| तो...माँ के इलावा हर कोई कम-से-कम महीने में एक बार तो "feeling low","bore हो रहे हैं ","आज कुछ करने का मन नहीं कर रहा हैं "  ऐसे dialogues  बोलते रहते हैं या हम सुनते रहते हैं। ऐसा लगने में कुछ गैर भी नहीं हैं। मन और शरीर कोई machine थोड़ी है, जो बिना थके, बिना रुके काम करते रहेगा | महिलाओं को तो हर महीने अपने periods  के दौरान ऐसे mood swings  नैसर्गिक तौर पर होते ही रहते है। महान लेखक Osho जी ने तो अपने  Book of Woman इस किताब में  कहा है की स्त्रियों की तरह पुरुषों को भी महीने में एक बार ऐसे mood swings  का अनुभव होता है। पर स्त्री जननी होती है इसलिए शायद उन्हें उन दिनों में मानसिक तकलीफों की साथ शारीरिक पिडाओं से भी गुजरना पड़ता है। इसीलिए स्त्रियोंकी शारीरिक और मानसिक सहनशक्ति की क्षमता पुरुषोंसे से काफी ज्यादा होतो हैं। निसर्गने उनकी रचना ही ऐसी की हैं। 

(चिंता । Anxiety)
पर अगर हमारे दैनंदिन जीवन में "कुछ करने का मन नहीं होना, बिस्तर पर पड़े रहना, छोटी छोटी बातों पर  घुस्सा होना, अपना आपा खो बैठना " वगैरा वगैरा जैसे mood swings बार बार होने लगे तो हमारा मन, हमे आगेकी चेतावनी दे रहा होता हैं ये समझना जरूरी हैं। काफी बार यहीं चेतावनियां हम नजरअंदाज कर देते है। और फिर ये बातें मन में घर करना शुरू कर देती हैं। यही दड़पन आगे जाकर depression के कुए में हमे ढकेल सकता है। अचानक हस्ता खेलता इंसान एकदम शांत रहने लगता हैं।अकेले रहने लगता है। जिंदगी में अलग अलग मोड़ पर मिलने वाली नाकामयाबियाँ (failures) और अस्वीकार (rejections) भी इसकी वजह हो सकती हैं। इनके घाव इतने सख्त होते हैं  की नया कुछ करने जाये तो सफलता के बदले असफलता ही नसीब होगी ऐसा दृढ़ विश्वास होने लगता हैं। ये नाकामयाबियाँ और अस्वीकार कभी पारिवारिक, कभी निजी या कभी व्यावसायिक तौर पर हो सकती हैं। ये सारी मनोवस्थाए किसी के सामने ब्यान करना मुश्किल लगने लगता हैं। क्योंकि सामने वाले इंसान की मनोवस्था अगर हमारी मनोवस्था जैसी ना हो तो वो हमारी व्यथा कैसे समझ पायेगा, यही सवाल बार बार मन को कुरेदता रहता हैं। और फिर हम ऐसी मनोवस्था से गुजर रहे है ये अगर किसी को पता चल गया तो कही हमारा मजाक ना बन जाये इसका अलग डर भी लगा रहेता है। इस वजह से, ऐसे इंसान फिर अकेले रहेना पसंद करते हैं। वो शांत रहने लगते हैं , पृथक (isolated) हो जाते हैं। कभी कभी अपने messages या social media status द्वारा अपना मनोगत ब्यान करते रहते हैं। 


NOREPINEPHRINE ये एक महत्त्वपूर्ण द्रव्य (chemical) है जो हमारे दिमाग और शरीर में hormones और neorotransmitter का काम करता है। 

DOPAMINE ये द्रव्य (chemical) दिमाग से तांत्रिक कोशकाए (nerve cells) को संदेश (message) भेजने का काम करता है। 

SEROTONIN नामक द्रव्य (chemical) दिमाग में happy  chemical समझा जाता हैं। ये द्रव्य हमारा mood प्रसन्न, आनंददायी रखने में काम आता हैं। तनाव की मात्रा (stress level) बनाये रखने का काम करता हैं।

जब इन और इन जैसे द्रव्योंकी कमतरता दिमाग को महसूस होती है तो हम उसे मजाक में दिमाग में Chemical  लोचा है ऐसा बोलते हैं। Chemical  लोचा का अर्थ उदास लगना, नकारात्मक भावनाए तयार होना, तनाव और चिड़चिड़ापन महसूस होना, मीठा खाने का मन होना और आगे चलकर इसकी तिव्रता हद से ज्यादा बढ़ गयी तो मन में अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) का जन्म होते देर नहीं लगती।

Depression के कुछ ध्यान देने लायक लक्षण (symptoms):
१) अपनी hobbies में रूचि खो देना।
२) दोस्त या परिवार के बदले अकेले वक्त गुजारने का मन होना। 
३) नींद कम आना।  
४) कामकाज मेँ रूचि खो देना। 
५) खाने-पिने में रूचि न होना या जरूरत से ज्यादा भूक लगना और खाने का ज्यादा सेवन करना। 
६) मिठा खाने का मन होना। 
७) थका हुआ और सुस्त महसूस करना। 
८) जीवन में उम्मीद की कमी महसूस होना। 
९) जो चिजे करने से हमेशा ख़ुशी मिलती थी वहीं चिजे करने का मन न होना। 
१०)जीवन में कुछ अच्छा होने की उम्मीद और आशा खो देना। 

२ हफ्तोंसे ज्यादा अगर ऐसे लक्षण दिख रहे हो तो ये depression हो सकता हैं , जो एक गंभीर समस्या है। पर इसका इलाज करने लायक स्थिति भी निश्चित हो सकती हैं। हमारे इर्दगिर्द अगर किसी व्यक्ति में ऐसे कुछ आसार दिखाई दे, तो बिना देर किये, एक जागरूक नागरिक या दोस्त या परिवार के नाते वो इंसान खुद आकर अपनी मनोवस्था ब्यान करें इसका इन्तजार किये बिना, हमें आगे आकर उससे बात करनी चाहिए, उसकी व्यथा समझनी चाहिए। अगर जरूरत पड़े तो किसी मानसशास्त्रद्न्य (Psychologist) या मनोचिकित्सक (Psychiatrist) के पास उसे ले जाकर उसकी मनोवस्थाके बारे में सलाह लेनी चाहिए और उसे ये समझाना चाहिए की  "IT IS OKAY TO NOT BE OKAY "

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बालवस्था (child age) में उत्पन्न होने वाले DEPRESSION के बारे में अगले हफ्ते, अगले blog The CHILD AGE  में,तब तक stay safe and healthy,  MENTALLY PHYSICALLY 😊.
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे 

Comments

  1. mahiti cha gli lihili aahe changla prayatna aahe

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  2. Yet another informative blog...... Tumcha Hindi superrb aahe !! And I would really like to know the reason behind writing blogs on psychology... What motivated you ? TIA...

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    1. Firstly thanks for reading and acknowledging the blog.i had planned to do an episodic video series on actual case studies in fiction story format and was in talks with psychology experts as a part of research.But due to lack of financial backing it did not materialise. So now planned to put the same in BLOG format.😊

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