Blog Post 05: The YOUNG AGE



(PCSD)
२४-२५ साल की उम्र भी वैसे एक नाजुक उम्र होती हैं जब अपनी पढ़ाई पूरी कर हम बाहरी दुनिया का मुकाबला करने केलिए कदम रखते हैं। इस बाहरी दुनिया का मुकाबला करने की मानसिकता कुछ अलग होती है और उम्र दर उम्र वो वक्त के चलते विकसित होती जाती है। पढीई पूरी हो चुकी होती हैं, पर मनचाही नौकरी मिलने में कभी कभी दिक्क्त आती हैं, समय लगता हैं। पहला मुकाबला यहीं से शुरू होता हैं। MBA या कोई दूसरी उच्च शिक्षा एक साथ पाने के बाद, दोस्तों की campus placement द्वारा बड़े कंपनियों में अच्छे salary package की नौकरी लग जाती हैं । हमारा किसी वजेह से selection नहीं होता। यहीं से मन में निराशा का बीज बोना शरू हो जाता हैं । दिन-रात पूरा समय साथ बिताने वाले यही दोस्त अचानक व्यस्त हो जाते हैं। नौकरी नहीं मिलती इसलिए फिर घरवाले, रिश्तेदार ताने मारना शरू करते है। कभी कभी पढ़ाई केलिय  माता-पिता ने कर्ज लिया होता है और अच्छी नौकरी लगने के बाद सारा कर्जा फिट जायेगा इस उम्मीद वो तांक लगाए बैठे होते है। ऐसे समय पर नौकरी नहीं मिलने की वजह से उनका भी सारा financial planning बिघड जाता हैं। धीरे धीरे उनका सामना करने से हम कतराने लगते हैं। काबिलियत होते हुए भी नौकरी क्यों नहीं मिलती इसका जवाब हमारे पास नहीं होता और हम इसी का जवाब ढूढ़ने में अपने आप को खो देते हैं। हमारी सूझभुझ काम नहीं करती। नकारात्मक विचारों से दिमाग घिर जाता हैं और फिर depression का शिकार होकर कोई गलत कदम उठा लेते हैं। इसे Post Commencement Stress Disorder (PCSD) कहते हैं।अगर हममे नौकरी करने की मानसिकता नहीं है तो हम कोई व्यवसाय करने का विचार करते हैं। आज कल की Millenial Generation जिसे STARTUPS कहते हैं। वहाँ भी स्पर्धा के चलते अनिश्चतता की वजह से नाकामयाबी की वजह से depression का अनुभव आ सकता है। वजह होती है की बिना संयम रखें immediate results की अपेक्षा रखना। 

Times Of India के अनुसार साल २०१८ में २७०० लोगोंने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या की है जिसका मतलब लगबग पर दिन ७ इतना होता है। अगर उच्चशिक्षित युवाओं का ये हाल है तो साधारण शिक्षण लिये हुये युवाओं का क्या हाल होता होगा ये सोचने की बात हैं। इस समस्या में शांत दिमाग से सोचने की बात ये हैं  की आप अगर इतना उच्च शिक्षण लेने की क्षमता रखते है तो उस शिक्षा का उपयोग करने की वो काबिलियत भी आप में निश्चत हैं। हर चीज को वक्त देने की जरूरत है। सय्यम रखना जरूरी होता हैं। आज की generation, fast track में विश्वास रख्ती हैं। ४० के उम्र तक घिस घिस कर काम करना और फिर retire हो के अपनी मनपसंद जिंदगी जीना यही उनकी योजना होती हैं। लेकिन वो ये नहीं समझ पाते की ४० की उम्र तक हम अगर तंदुरुस्त रहे तो आगे की जिंदगी मनचाही तरिके से और अपने दोस्त और परिवार जनोंके साथ बिता सकते हैं। जब हम जवान होते है तो बेशक बहोत काम और मेहनत करनी चहिये लेकिन ये भी याद रखना है की सिर्फ काम और मेहनत नहीं करनी चाहीये। हमारी मानसिक और शारीरिक अवस्था का ख्याल रखना भी जरूरी है। कभी कभी बड़े बुजुर्ग जो कहते है की "जो जो जब होना है, वो वो तब तब होता हैं " और "वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा कुछ नहीं मिलता।" अगर मिल भी जाये तो वो हमारे पास नहीं टिकता। भारी आर्थिक  नुकसान या बिमारी वगैरा के इलाज में खर्च हो जाता हैं। इसीलिये संयम रखना बहोत जरूरी हैं।
  

आगे हमें मनचाही नौकरी मिल जाती हैं, लेकिन ऑफिस में आसपास की परिस्थितियाँ, वहाँ का वातावरण, हमारें BOSS, हमारें सहयोगी, ऑफिस के politics, इस पर भी हमारें मानसिक स्वास्थ्य का तंदुरुस्त बने रहना निर्भर करता है। जीवन की पहेली नौकरी बहोत कुछ सिखाती है।इक तरह से वहाँ के अनुभव, हम जिस क्षत्र में काम करते है उसमे एक मजबूत आधार तयार करने का काम करती है। हमारें मानसिक अवस्था को भी एक तरह से ढालने का काम करती है। नसीब अच्छा हो तो हमें अच्छे सहयोगी, अच्छे boss मिल सकते है जो हमारें अनुभव में अच्छी बढ़ोतरी लाने में मदद कर सकते हैं। लेकिन ऐसा भी होता है की पहले नौकरी में बुरे अनुभव के वजह से हमारा आत्मविश्वास ढल जाता है। जिस लगन और उत्साह से आप काम करने की चाह रखते हो उससे बिलकुल विपरीत अनुभव या आपके साथ किये गये बर्ताव के कारण, आपका मनोबल उस काम को करने का आत्मविश्वास गवां देता है। आपके काम में बार बार  गलतियाँ निकाली जाती हैं, आप नये  होते हो तो दूसरों की गलतियाँ आपके सर पर लाद दी जाती हैं और आप अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में कुछ बोल नहीं पाते। आप PEER PRESSURE  के शिकार बन सकते हो। Team में जब कोई नया उम्मीदवार भर्ती होता हैं तो जो पहले से team में होते हैं उन्हें एक प्रकार की अनिश्चितता (insequirity) होती हैं। जिससे राजकारण का जन्म होता है। हमारें काम का credit, कोई दूसरा सहयोगी ले जाता है। Boss का विसंगत (illogical) bossing हो सकता हैं। इस सभी चिजों का जाने अनजाने मानसिक अवस्था पे विपरीत परिणाम होते रहता हैं। हम अगर संतुलन बनाये रखने में चूक गये तो निश्चित रूप से depression की तरफ धीरे धीरे बढ़ सकते त हैं।

कार्यस्थल (workplace)पर तनाव की कुछ वजह :
  • नौकरी से बर्खास्त करने का डर।
  • बॉस द्वारा हर बार काम की मान्यता (validation) और प्रशंसा (appreciation) के अपेक्षा का तनाव।   
  •  हर वक्त उत्त्मोत्त्म स्तर पर काम करने का तनाव। 
  • Staff  के कटौती के चलते काम का भोज बढ़ जाना और उस केलिए काम का वक्त बढ़ जाना।
  • काम करने के प्रक्रिया पर नियंत्रण का अभाव महसूस करना। 
  •  बढ़ती अपेक्षा को पुरा करने केलिए कार्य संतुष्टि (job  satisfaction) के बिना जितोड़ मेहनत करते रहना। 
कार्यस्थल (workplace)पर तनाव की कुछ संकेत (symptoms):
  • समाज से दुरी रखने का मन होना। 
  • चिड़चिड़ापन, तनाव और depressed महसूस करना।
  • सरदर्द या माँसपेशियों (muscles) मे खिचाव महसूस होना। 
  • पेट या पचन की समस्या। 
  • थकान महसूस होना।
  • उदासीनता, काम से ऊब जाना। 
  • ध्यान न लगना। 
  • निंद  की समस्या।
  • यौन भावना का अभाव। 
  • तनाव से बचने केलिए नशे और शराब का अति सेवन। 
कार्यस्थल (workplace) पर तनाव  को दूर  करने के कुछ उपाय :
  • अपने तनाव को किसी नजदीकी व्यक्ति(सहयोगी, परिवार, दोस्त) से बात कर बांटने की कोशिश करें। 
  • किसी नये व्यक्ति से दोस्ती कर अपना तनाव उसके साथ बांटे क्योंकि उसका नजरिया आपके तरफ बिलकुल भी निष्पक्ष (neutral) होगा। 
  • अपने सेहत का अच्छे पोषक आहार और कसरत से ख्याल रखे। 
  • निंद के मामले में लापरवाही या परहेज ना करें। 
  • काम की प्राथमिकता के अनुसार उसकी व्यवस्था करना सिखे, जिससे काम का अधिभार (overload) तल जायेगा। 
  • काम और जिम्मेदारियों के प्रति सक्रिय रहें। सहयोगियोंसे विचार-विमर्श (discussion) करे, काम का विवरण (description) करें, बदलाव के अनुभव केलिये डिपार्टमेंट बदलने की दरख्वास्त करें, हर ३ महीने बाद २-२ दिन की छुट्टी लेकर थोड़े तरो ताजा होकर वापस आ जाये। 
  • काम में संतुष्टि (job satisfaction) का अनुभव लेने का प्रयास करें। 
हर व्यक्ति अपनी जिंदगी का ७५% वक्त अपने ऑफिस में बिताता हैं। तो अगर उस जगह से, हमारे काम से, हमें अगर मानसिक ख़ुशी नहीं मिल पायेगी तो उसका असर हमारे निजी जिंदगी, हमारे परिवार पर पड़ना स्वाभाविक हैं। 

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मध्यम वय (middle age) में उत्पन्न होने वाले DEPRESSION के बारे में अगले हफ्ते,अगले blog The MIDDLE AGE में पढ़िये, तब तक stay safe and healthy, MENTALLY & PHYSICALLY😊. 
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे  

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