Blog Post 07: The OLD AGE

बुढ़ापा (The OLDAGE) उम्र का आखिरी पड़ाव होता है। मानसिक तौर पर बुढ़ापा, महसूस करने की चीज है। अगर आप positive minded इंसान है तो ८० साल में भी आप मानसिक और शारीरिक तौर पर खुद को और अपने आस पास के लोगोंको जवान महसूस करा सकते  है। लेकिन नकारात्मक सोच के चलते आप ४० साल में भी बूढ़े लग सकते हो। वैसे बुढ़ापे में और भी कुछ परिस्थितियाँ depression  केलिए कारणीभूत हो सकती हैं। ज्यादातर देखा गया है की बुढ़ापे में मृत्यु का डर, आर्थिक चिंता, अकेलापन, किसी नजदीकी दोस्त, रिश्तेदार या अपने जीवनसाथी की अकस्मात मृत्यु,  ये depression की वजह हो सकती हैं। 

पुराने जमाने में संयुक्त परिवार (joint family) प्रणाली कार्यक्षम थीं। तो बुढ़ापे तक पूरा परिवार संघटित रहता था। बदलते वक्त के साथ जमाना बदल गया और अब एकल परिवार (nuclear family) प्रणाली कार्यक्षम हो गयी। बच्चे बड़े होकर अपने नौकरी, व्यवसाय के बेहतर संभावनाओं (prospects) केलिए घर से दूर दूसरे शहर, दूसरे देश में स्थित होने लगे। माता-पिता मेहनत कर अपने बच्चोंको उनके उज्वल भविष्य केलिए उच्च शिक्षण प्रदान करते है। फिर आगे चलकर कभी कभी अपने पास रहने का हट कर उनके प्रगति में अड़चन पैदा करते हैं। ये बच्चों के साथ अन्याय होगा। माता-पिता को ये समझदारी दिखाकर बच्चों को उनके उज्वल भविष्य हेतु अपने आप से दूर रखने की मानसिकता दिखाना जरूरी हैं। लेकिन फिर बच्चों का भी ये कर्तव्य हैं की वे अपने माता-पिता को उनसे दूर रह कर भी अकेला महसूस ना कराये। दोनो तरफ से समन्वय रखना जरूरी होता हैं। 

आज दुनिया तकनीकी तौर पर इतनी विकसित हो चुकी है की आप विश्व के किसी भी कोने से फ़ोन या कंप्यूटर apps के जरिये वार्तालाप कर सकते है। बुढ़ापे में माता-पिता की सिर्फ यही तो अपेक्षा होती है की उनके दूर स्थित बच्चे, कम-से-कम एखाद-दो दिन में  उनकी खैरियत पूछे और वे अपना हालचाल बताये। कभी कबार अपने यहाँ रहने बुलाये। लेकिन बच्चे अपने काम, व्यवसाय में इतने  मशरूफ हो जातें है की अपने माता-पिता की तरफ अपने कर्तव्य भुल जाते हैं। बूढ़े माता-पिता घंटो, दिनों तक अपने बच्चों के फोन का इन्तजार करते रहते हैं लेकिन कोई फोन नहीं आता। उन्हें फिर अकेलापन या अवहेलनात्मक (ignored) महसूस होने लगता है। एक साथ रहते हुए भी कभी कभी हालात ठीक नहीं होते। बच्चों को साथ में रहने वाले अपने माता-पिता का हाल-चाल पूछने की फुरसत नहीं होती। जैसे किसी निर्जिव वस्तु की तरह उन्हें कोने में डाल दिया जाता हैं। बड़े होने और स्वावलम्बी बनने के बाद बच्चों को घरेलू मामलो में बूढ़े माता-पिता की सलाह या सुझाव, बिना मतलब की दखलंदाजी लगने लगती हैं। फिर उन्हें कड़वे शब्द सुना कर चुप करा दिया जाता हैं। 


बुढ़ापे में उम्र के चलते उनकी learning capability थोड़ी कम हो जाती हैं। कुछ चीजों मे ख़ास कर आज कल के electronic devices जैसे laptop को operate करना या मोबाइल पे बैंक transaction जैसे काम उन्हें सिखने में थोड़ी दिक्कत होती हैं। बच्चों के पास अपने काम की वजह से उन्हें मदत करने की या उन्हें सिखाने का समय और सहनशीलता नहीं होती। इसके वजह से जाने-अनजाने में उनका माता-पिता से अवहेलनात्मक (disregardful) बरताव हो जाता है। ऐसे समय में बच्चों को ये कभी नहीं भूलना चाहिए की बचपन में अगर माता-पिता ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाते वक्त ऐसे ही डांटा-फटकारा होता तो बच्चे आज उन्हें कुछ सिखाने के काबिल नहीं बनते। जैसे माता-पिता बच्चों को संयम रखकर बड़ा करते है, वैसे ही अब बच्चों को भी संयम रखकर बुढ़ापे में उनकी मदत करना जरूरी होता है। इसीलिए तो बुढ़ापे को एक तरह का बचपन कहा जाता है। जीवन चक्र (life circle) ऐसे ही तो पूरा होता है।  

कई cases में ये भी देखा गया है की बचपन में माता-पिता अपने नौकरी और करिअर की वजह से बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते। बच्चों का ख्याल रखने केलिए उन्हें शिशु घर (creche) में रखते हैं या उन्हें baby sitter के भरोसे घर पर छोड़ देते है। कही न कही इसका बच्चों के मानसिक अवस्था पर असर पड़ता हैं और परिवार के तरफ उनका लगाव धीरे धीरे कम होने लगता हैं। बड़े होकर वही बच्चे फिर अपने बुढ़े माता-पिता को वृधाश्रम में डाल देते हैं। इंसान हमेशा एक तरफा सोच रखकर अपना मन बना लेता है। वो ये नहीं समझता की जो अकेलापन उन्होंने बच्चों को उनके बचपन में महसूस करवाया था वही अकेलापन आज उनके हिस्से आ रहा है। इसीलिये समय समय पर माता-पिता को अपने काम से फुरसत निकाल कर जैसे हो सके वैसे अपने बच्चों के साथ वक्त गुजारना जरूरी है ताकि बच्चों को वो अकेलापन महसूस ही ना हो। फिर बड़े होने पर बच्चे भी अपने बूढ़े माता-पिता का ख्याल रखेंगे और उनको कोई अकेलापन महसूस नही होगा। "जो बोओगे वैही पाओगे" ये प्रकृति का नियम परिवार में भी लागू होता है। 

बुढ़ापे में आने वाले depression  के कुछ और लक्षण (symptoms):

०१) उदासीनता या निराशा का भाव। 
०२) शारीरिक व्याधि का दर्द। 
०३) खुद की देखभाल के प्रति लापरवाही करना। 
०४) खुद को हिन, बोझ, नाकाबिल और आत्मघृणित समझना।
०५) प्रेरणा का अभाव।   
०६) वजन घटना या भूक न लगना। 
०७) याद्दाश कम होना। 
०८) बेबसी और अकेलेपन की भावना। 
०९) नींद कम होना या ज्यादा नींद आना। 
१०) दिन में सोने का मन होना। 
११) शक्तिहीन महसूस करना। 
१२) शराब का ज्यादा सेवन। 
 
वैसे तो कोई इंसान किसी के साथ जिंदगी भर तो रहे नहीं सकता। तो किसी पर भी इस हद तक निर्भर रहना भी ठीक नहीं होता। अकेले (loner) रहना और अकेलापन (loneliness) महसूस करना दोनों अलग बाते है। आप अकेले (alone), आत्मनिर्भर (self dependent) होकर अपनी मर्जी से रहे सकते है। लेकिन आप अकेलापन (loneliness) महसूस करे तो बात थोड़ी जटिल हो सकती हो। सच तो ये हैं की इंसान अपना बुढ़ापा आराम से गुजार सके, जो कुछ जवानी में पारिवारिक जिम्मेदारी के चलते नहीं कर पाये वो सब कर सकें, इसलिए जिंदगी भर, retirement तक मेहनत करते रहता है, कमाता रहता हैं। पर जब बुढ़ापा आता हैं तो retirement के बाद जो कुछ जिंदगी में करना छूट गया होता हैं उसे करने के बजाय, घरवालों से अपनी अपेक्षापूर्ति करवाने मे अपना मन खर्च करने लगता हैं। मनुष्य का स्वभाव ऐसा ही हैं। किसी भी उम्र में उसे जो पास होता है उसकी कदर नहीं होती और जो नहीं होता है उसके पीछे  दौड़ते रहता हैं। 

भगवान के पास इंसान कुछ नहीं ले जा सकता। तो हर उम्र में जो है उसमे खुश रह कर उसका आनंद उठाना जरूरी हैं। जवानी में तंदुरुस्त सेहत के चलते बुढ़ापे का ज्यादा विचार न करते हुए समय-समय पर जिंदगी का मजा उठाना चाहिए। बुढ़ापे में जो कुछ बचा है उसकी कदर कर, परिवारजनोंसे ज्यादा अपेक्षा ना करते हुए, जितना हो सके उतना आत्मनिर्भरता से जीवन का अंतिम पड़ाव सकारात्मक भावना से बिताना चाहिए। इसीसे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जीवन के आखरी क्षण तक बना रहे सकता हैं। इंसान गुजर जाने के बाद उसके पीछे, उस की जिंदादिली उसके परिवार और दोस्तों  केलिए यादगार होनी चाहिए।   

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अब तक अलग अलग उम्र में (बचपन से बुढ़ापे तक) परिस्थिति अनुसार उत्पन्न होते b के बारे में जाग्रुकता  हेतु जानकारी देने का प्रयास किया हैं। अगले blog से अलग अलग मानसिक अवस्थाये, Phobias, Psychological Disorders  के बारे में जाग्रुकता  हेतु जानकारी देने का प्रयास होगा। तब तक stay safe and healthy, MENTALLY & PHYSICALLY 😊. 
-(KD Blogs)
✍©कुणाल देशपांडे. 

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